Saturday, September 29, 2012

स्मृति

देखा जो खिड़की के बाहर, पाया आज फिर वही रात है,
फिर वही बरसात , फिर वही जज़्बात है |

ज़िन्दगी ले आई आज फिर उसी राह पे मुझे,
बस जो न मिल पाया वो तेरा साथ है |

मौसम बदला, बदली ये फ़िज़ाए,
पर ये हाथ ढूढंता आज भी तेरा हाथ है |

फिर तो हज़ार कोशिशें करके भी ना आ पाए उतने करीब  हम,
अब तो बस ये भटकती यादें ही तेरे प्यार की सौगात है |

देखा जो खिड़की के बाहर, पाया आज फिर वही रात है,
फिर वही बरसात , फिर वही जज़्बात है ,
मीलों हैं फासले दरमियाँ में अब तो,
हाँ ये हाथ ढूंढता आज भी तेरा ही हाथ है..



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